दिया गया था, यहाँ तक कि उसने, जुगुप्सा और विषाद से भरकर, इस जीवन को उठाकर फेंक तक देने का मन बना लिया लिया था, लेकिन यह कि एक नदी के तट पर, नारियल के एक वृक्ष के नीचे, उसकी चेतना जागी थी, उसके होंठों से ओ३म् का पवित्र शब्द फूटा था, कि इसके बाद उसकी नींद लग गयी थी और अब वह जाग चुका है और नये मनुष्य की तरह संसार को देख रहा है। शांत चित्त से उसने उसी ओ३म् शब्द का मन ही मन उच्चारण किया, जिसका उच्चारण करते-करते उसकी नींद लग गयी थी, और उसको ऐसा प्रतीत हुआ कि उसकी यह समूची प्रदीर्घ निद्रा गहरे ध्यान में डूबकर किये गये ओ३म् के सुदीर्घ जाप के सिवा, ओम के चिन्तन के सिवा, और कुछ नहीं थी, ओम में, इस
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