उसको लगा, उसने अब तक, इन हाल के वर्षों और दिनों में, दुःख के एक टुकड़े को, यातना के एक टुकड़े को, उसका पूरी तरह से स्वाद लेकर थूका है, विषाद और मृत्यु की सीमा तक उसको निगला है। यह अच्छा था। सम्भव था कि वह कामास्वामी के साथ और भी लम्बे समय तक बना रहता, धन कमाता, धन का अपव्यय करता, अपना पेट भरता, और आपनी आत्मा को प्यास से मर जाने देता; सम्भव था कि वह इस चिकने-चुपड़े, अच्छी तरह से ढँके हुए नर्क में और अधिक समय तक बना रहता, अगर सम्पूर्ण हताशा और विषाद का यह क्षण, यह पराकाष्ठा का क्षण, न आया होता, जब वह इस उफनती हुई नदी के ऊपर झुका हुआ था और स्वयं को नष्ट कर देने के लिए तैयार हो गया था। अगर उसको
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