Suraj

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"क्या तुम परिहास नहीं कर रहे हो?" गोविन्द ने पूछा। "मैं परिहास नहीं कर रहा हूँ। मैं तुमसे वह कह रहा हूँ जो मैंने पाया है। ज्ञान तो दूसरे तक पहुँचाया जा सकता है, लेकिन प्रज्ञा नहीं। उसको केवल उपलब्ध किया जा सकता है, उसको जिया जा सकता है, उससे सम्मोहित हो जाना सम्भव है, उसके सहारे चमत्कार भी कदाचित किये जा सकते हैं, लेकिन उसको न तो शब्दों में व्यक्त किया जा सकता है, न सिखाया जा सकता है। यही वह बात है जिसको लेकर मेरे मन में, जब मैं युवा था तब भी, कभी-कभी सन्देह जागा करता था, जो मुझको गुरुओं से दूर ले गयी थी। मुझको एक विचार उपलब्ध हुआ है, गोविन्द, जिसको एकबार फिर तुम एक परिहास या मूर्खता समझोगे, ...more
Siddharth (Hindi) (Hindi Edition)
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