बहुत देर तक वह अपने रूपान्तरण के बारे में सोचता रहा, उस पक्षी की पुकार को सुनता रहा जो आनन्दित होकर गा रहा था। क्या यह पक्षी मर नहीं गया था उसके भीतर, उसने अपनी मृत्यु को महसूस नहीं कर लिया था? नहीं, कोई और वस्तु थी जो उसके भीतर मर गयी थी, कोई और वस्तु जो अरसे से मरने की कामना करती रही थी। क्या वह यही वस्तु नहीं थी जिसको वह इन्द्रियनिग्रह के अपने उत्साहपूर्ण वर्षों में मारना चाहता था? क्या यह उसका स्वत्व ही नहीं था, उसका छोटा-सा, डरा हुआ, गर्वीला स्वत्व, जिसके साथ वह वर्षों संघर्ष करता रहा था, जो उसको बारबार पराजित करता रहा था, जो मार दिये जाने के बाद हर बार वापस उठ खड़ा होता था, उसको आनन्द से
बहुत देर तक वह अपने रूपान्तरण के बारे में सोचता रहा, उस पक्षी की पुकार को सुनता रहा जो आनन्दित होकर गा रहा था। क्या यह पक्षी मर नहीं गया था उसके भीतर, उसने अपनी मृत्यु को महसूस नहीं कर लिया था? नहीं, कोई और वस्तु थी जो उसके भीतर मर गयी थी, कोई और वस्तु जो अरसे से मरने की कामना करती रही थी। क्या वह यही वस्तु नहीं थी जिसको वह इन्द्रियनिग्रह के अपने उत्साहपूर्ण वर्षों में मारना चाहता था? क्या यह उसका स्वत्व ही नहीं था, उसका छोटा-सा, डरा हुआ, गर्वीला स्वत्व, जिसके साथ वह वर्षों संघर्ष करता रहा था, जो उसको बारबार पराजित करता रहा था, जो मार दिये जाने के बाद हर बार वापस उठ खड़ा होता था, उसको आनन्द से वंचित कर भयभीत करता हुआ? क्या वह यही नहीं था, जो आज अन्ततः मृत्यु को प्राप्त हुआ है, यहाँ जंगल में, इस सुन्दर नदी के तट पर? क्या इसी मृत्यु के चलते यह सम्भव नहीं हुआ है कि अब वह एक बालक के समान है, विश्वास से भरा हुआ, पूरी तरह निर्भय, आनन्द से परिपूर्ण? अब सिद्धार्थ को यह बात भी कुछ हद तक समझ में आ गयी कि क्यों वह एक ब्राह्मण के रूप में, एक तपस्वी के रूप में, इस स्वत्व से व्यर्थ ही लड़ता रहा था। यह ज्ञान का अतिरेक ही था जो उसको आगे बढ़ने से रोक रहा था, उस लक्ष्य की प्राप्ति के लिए आवश्यकता से अधिक पवित्र श्लोक, आवश्यकता से अधिक यज्ञ के नियम, आवश्यकता से अधिक आत्मभर्त्सना, आवश्यकता से अधिक कर्म और साधना!! वह अहंकार से भरा हुआ था, हमेशा सबसे अधिक चतुर, हमेशा कठोर परिश्रमी, हमेशा दूसरों से एक क़दम आगे, हमेशा प्रबुद्ध और आध्यात्मिक, हमेशा पुरोहित या पण्डित। उसका स्वत्व इस पाण्डित्य में, इस अहंकार में, इस आध्यात्मिकता में, पलायन कर गया, वहाँ पर दृढ़तापूर्वक जम गया और विकसित होता रहा, जबकि...
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