गहरे ध्यान की अवस्था में समय को अस्तित्व-हीन कर देने की सम्भावना होती है, जो था, जो है, और जो होगा उस समस्त जीवन को एक ही समय में देखने की सम्भावना, और वहाँ सबकुछ शुभ है, सबकुछ पूर्ण है, सबकुछ ब्रह्म है। इसलिए जो कुछ भी है उस सब को मैं शुभ के रूप में देखता हूँ, मृत्यु मेरे लिए जीवन के समान है, पाप पुण्य के समान है, प्रज्ञा मूर्खता के समान है, प्रत्येक वस्तु को वही होना होता है जो वह है, अगर किसी वस्तु से मैं अपेक्षा करता हूँ कि वह मेरे लिए शुभ हो, वह मेरा हित करने के सिवा और कुछ न करे, वह मुझे किसी भी तरह की हानि न पहुँचा सके, तो इसके लिए इतना भर आवश्यक है कि मैं उसको इसकी स्वीकृति दूँ, उसकी
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