बहुत गहरी थी उसकी नींद और स्वप्न-विहीन, अरसा हो चुका था उसको ऐसी नींद को हासिल किए हुए। जब कई घण्टों बाद वह जागा, तो उसको लगा जैसे दस बरस बीत चुके हैं। उसने धीमे-धीमे बहते जल की कलकल सुनी; उसको इसकी सुध नहीं थी कि वह कहाँ पर है और कौन उसको वहाँ पर लाया है, उसने आँखें खोलीं, विस्मय के साथ देखा कि वहाँ वृक्ष थे और उसके ऊपर आकाश तना था, और उसको याद आया कि वह कहाँ पर था और वहाँ कैसे पहुँचा था। लेकिन इसमें उसको बहुत समय लगा, और अतीत उसको ऐसा प्रतीत हुआ मानो वह किसी आवरण से ढँका हुआ, अन्तहीन दूरी पर स्थित हो, अन्तहीन रूप से कहीं दूर, अन्तहीन रूप से अर्थहीन। वह केवल इतना जानता था उस पहले क्षण में जब
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