वह बहुत गंभीरता के साथ कामना कर रहा था कि वह अपने बारे अब कुछ भी और न जाने, कि उसको चैन मिल जाए, कि वह मर जाए। काश कि उसके ऊपर बिजली गिर जाती और वह मर जाता! काश कि कोई बाघ उसको निगल जाता! काश कि कोई ऐसी मदिरा, कोई ऐसा विष होता जो उसकी इन्द्रियों को सुन्न कर देता, उसको विस्मृति के हवाले कर देता, उसको सुला देता, और फिर जागना न होता! क्या कोई ऐसी गन्दगी बची रह गयी थी जिसमें उसने स्वयं को लिप्त नहीं किया था, ऐसा कोई पाप या मूर्खतापूर्ण कृत्य जो उसने कर नहीं लिया था, आत्मा की ऐसी कोई श्रीहीनता जिसका उसने वरण नहीं कर लिया था? क्या इसके बाद भी जीवित बने रहना तनिक भी सम्भव रह गया था? क्या सम्भव रह गया
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