"यह अच्छा है," उसने सोचा, "कि व्यक्ति उस हर वस्तु का स्वाद स्वयं ही चख ले, जिसको उसे जानना आवश्यक है। संसार और समृद्धि के प्रति वासना शुभ नहीं होती, यह बात तो मैं अपने बचपन में ही सीख चुका था। यह बात तो मैं लम्बे समय से जानता आया था, लेकिन इसका अनुभव मैंने अब जाकर किया है। अब मैं इसे जानता हूँ, केवल अपनी स्मृति में नहीं, बल्कि अपनी आँखों में, अपने हृदय में, अपने उदर में जानता हूँ। इसको जान लेना मेरे लिए शुभ ही है!"