कई घण्टों तक वह अपने घुटनों के बल बैठा रहा, सुनता हुआ, कोई भी और दृश्य न देखता हुआ, रिक्तता में गिरता हुआ, स्वयं को गिरने देता हुआ, कोई भी राह न देखता हुआ। जब उसको घाव में तीव्र जलन का अहसास होने लगा, तो उसने धीरे से ओ३म् का उच्चारण किया, स्वयं को ओ३म् से भर लिया। उपवन के भिक्षुओं ने उसको देखा, और चूँकि वह कई घण्टों अपने घुटनों के बल बैठा हुआ था, और धूल उसके श्वेत बालों पर जमा हो रही थी, उनमें से एक भिक्षु उसके पास आया और दो केले उसके पास रख गया। बूढ़े ने उसको नहीं देखा। इस समाधि की अवस्था से वह तब जागा जब एक हाथ ने उसके कन्धे को छुआ। उसी क्षण वह इस स्पर्श को पहचान गया, इस कोमल, सकुचाये स्पर्श
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