स्वच्छ और सुन्दर वायु है यहाँ, कितना सुखद है यहाँ साँस लेना! वहाँ, जहाँ से मैं भाग खड़ा हुआ था, वहाँ हर वस्तु से लेपों की, मसालों की, मदिरा की, भोगविलास की, मादकता की गन्ध आती थी। कितनी घृणा थी मुझको धनाढ्यों की उस दुनिया से, उन लोगों की दुनिया से जो सुस्वादु व्यंजनों में रस लेते थे, जुआरियों की उस दुनिया से! कितनी घृणा हो गयी थी मुझको अपने आप से उस घिनौनी दुनिया में इतने लम्बे समय तक बने रहने को लेकर! किस तरह मैंने स्वयं से घृणा की, स्वयं को वंचित किया, विष दिया, यातना दी, अपने आपको बूढ़ा और पापी बना डाला! नहीं, अब मैं यह सोचकर, जैसा सोचकर मुझको बहुत अच्छा लगा करता था, कि सिद्धार्थ बुद्धिमान
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