Suraj

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एक दिन, जब घाव प्रचण्ड रूप से जल रहा था सिद्धार्थ लालसा से भर कर नदी-पार गया, नाव से उतरा और अपने बेटे की तलाश में शहर जाने का मन बनाने लगा। नदी धीमे-धीमे और शांत बह रही थी, यह सूखा मौसम था, लेकिन नदी की ध्वनि विचित्र तरह से आ रही थी; वह हँसी थी! वह स्पष्ट रूप से हँसी थी। नदी हँसी थी, इस बूढ़े मल्लाह पर खुलकर और स्पष्ट तौर पर हँसी थी। सिद्धार्थ रुक गया, वह पानी पर झुका, ताकि और भी बेहतर ढंग से सुन सके, और उसने शांत बहते जल में अपने चेहरे को प्रतिबिम्बित होते देखा, और इस प्रतिबिम्बित चेहरे में कुछ था, ऐसा कुछ जो उसको किसी ऐसी वस्तु की याद दिला रहा था जो वह भूल चुका था, और जैसे ही उसने उसके बारे ...more
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Siddharth (Hindi) (Hindi Edition)
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