एक दिन, जब घाव प्रचण्ड रूप से जल रहा था सिद्धार्थ लालसा से भर कर नदी-पार गया, नाव से उतरा और अपने बेटे की तलाश में शहर जाने का मन बनाने लगा। नदी धीमे-धीमे और शांत बह रही थी, यह सूखा मौसम था, लेकिन नदी की ध्वनि विचित्र तरह से आ रही थी; वह हँसी थी! वह स्पष्ट रूप से हँसी थी। नदी हँसी थी, इस बूढ़े मल्लाह पर खुलकर और स्पष्ट तौर पर हँसी थी। सिद्धार्थ रुक गया, वह पानी पर झुका, ताकि और भी बेहतर ढंग से सुन सके, और उसने शांत बहते जल में अपने चेहरे को प्रतिबिम्बित होते देखा, और इस प्रतिबिम्बित चेहरे में कुछ था, ऐसा कुछ जो उसको किसी ऐसी वस्तु की याद दिला रहा था जो वह भूल चुका था, और जैसे ही उसने उसके बारे
एक दिन, जब घाव प्रचण्ड रूप से जल रहा था सिद्धार्थ लालसा से भर कर नदी-पार गया, नाव से उतरा और अपने बेटे की तलाश में शहर जाने का मन बनाने लगा। नदी धीमे-धीमे और शांत बह रही थी, यह सूखा मौसम था, लेकिन नदी की ध्वनि विचित्र तरह से आ रही थी; वह हँसी थी! वह स्पष्ट रूप से हँसी थी। नदी हँसी थी, इस बूढ़े मल्लाह पर खुलकर और स्पष्ट तौर पर हँसी थी। सिद्धार्थ रुक गया, वह पानी पर झुका, ताकि और भी बेहतर ढंग से सुन सके, और उसने शांत बहते जल में अपने चेहरे को प्रतिबिम्बित होते देखा, और इस प्रतिबिम्बित चेहरे में कुछ था, ऐसा कुछ जो उसको किसी ऐसी वस्तु की याद दिला रहा था जो वह भूल चुका था, और जैसे ही उसने उसके बारे में सोचा, वह उसको मिल गयी : यह चेहरा एक अन्य चेहरे से मिलता-जुलता था, जिसको वह कभी जानता था और प्यार करता था और जिससे डरता भी था। यह उसके पिता, उस ब्राह्मण, के चेहरे से मिलता था। उसने याद किया कि किस तरह, अरसा पहले, जब वह युवा था, उसने अपने पिता को विवश कर दिया था कि वह उसके लिए संन्यासियों के साथ जाने की अनुमति दे दे, और किस तरह वह चला गया था और फिर कभी वापस नहीं लौटा था। क्या उसके पिता ने अपने बेटे के लिए वैसी ही पीड़ा का अनुभव नहीं किया होगा? क्या उसके पिता बहुत पहले अकेले ही नहीं मर गये होंगे, फिर से अपने बेटे को देखे बिना? क्या उसको अपने लिए भी वैसी ही नियति की उम्मीद नहीं करनी चाहिए? क्या यह अपने आप में एक प्रहसन नहीं है, यह एक दुर्भाग्यप्रद चक्र में गोल-गोल घूमते रहना, क्या यह विचित्र और हास्यास्पद नहीं है? नदी हँसी थी। हाँ, ऐसा ही है, हर वस्तु वापस लौटती है, वह हर वस्तु जिसने दुःख नहीं भोग लिया है और अपनी पराकाष्ठा पर पहुँचकर समाधान नहीं पा लिया है, उसी एक पीड़ा को बारबार झेल...
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