रघुवर प्रसाद ने चावल दाल आटा के डिब्बे बताए। सब्जी की टोकनी को देते-देते, पत्नी के पास रख दी, टोकनी में आलू थे। पूड़ी बहुत थीं इसलिए पत्नी ने आटा नहीं छाना। खाना बनते तक पिता आँख बन्द कर लेटे रहे। बेटे की गृहस्थी की खटर-पटर आँख मूँदे सुनना उन्हें सुख दे रहा था। उनको लगता होगा चलो बेटे की गृहस्थी हो गई।