Deewar Mein Ek Khirkee Rahati Thee (3rd) (Hindi Edition)
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एक काम के न होने का अहसास दूसरे काम के करने पर भुला दिया जाता है
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चाहे दूसरा काम, करने जैसा न भी हो। पान
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रघुवर प्रसाद ने चावल दाल आटा के डिब्बे बताए। सब्जी की टोकनी को देते-देते, पत्नी के पास रख दी, टोकनी में आलू थे। पूड़ी बहुत थीं इसलिए पत्नी ने आटा नहीं छाना। खाना बनते तक पिता आँख बन्द कर लेटे रहे। बेटे की गृहस्थी की खटर-पटर आँख मूँदे सुनना उन्हें सुख दे रहा था। उनको लगता होगा चलो बेटे की गृहस्थी हो गई।
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“यहाँ जीवन इतना अच्छा लग रहा है कि लगता है बहुत जी गए और मृत्यु यहाँ से बहुत समीप हो।” पिता ने कहा। “इतना अच्छा कि बहुत जीने के बाद भी बचा हुआ है। मृत्यु यहाँ से पास हो परन्तु वहाँ तक पहुँचने में बहुत देर लगेगी।” “ठीक कहती हो देर का जीवन बचा है। क्या हम यहाँ से मृत्यु को देख सकते हैं।” “बचे जीवन को देख लेने के बाद फुरसत मिलेगी तब। जीवित आँख से मृत्यु नहीं जीवन दिखता है।” “हाँ।”
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विद्यार्थियो रघुवर प्रसाद का अजीब चक्कर है। उनको नियम से एक हाथी लेने आता-जाता है। उनके कमरे की खिड़की से एक रास्ता जाता है। वहाँ एक सुन्दर नदी बहती है। जो लोग वहाँ जाना चाहें जरूर जाएँ!