त्यजेत् कुलार्थे पुरुषम् ग्रामस्यार्थे कुं त्यजेत। ग्रामं जनपदस्यार्थे आत्मार्थे पृथिवीं त्यजेत्। अर्थात् एक व्यक्ति का बलिदान देकर भी कुल को बचाना चाहिए, कुल का बलिदान देकर भी ग्राम को बचाना चाहिए, ग्राम की बलि चढ़ाकर भी राज्य बचा लेना चाहिए, और खुद को बचाने के लिए राज्य का भी बलिदान कर देना चाहिए, पर धृतराष्ट्र ने दुर्योधन नामक एक व्यक्ति का बलिदान नहीं किया और अंततः राज्य से हाथ धोना पड़ा।

