Praveen Gupta

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न चातिगुणवत्स्वेषा नान्यन्तं निर्गुणेषु च। नेषा गुणान् कामयते नैर्गुण्यान्नानुरज्यते। उन्मत्ता गौरिवान्धा श्री क्वचिदेवावतिष्ठते।।64।। लक्ष्मी न तो प्रंड ज्ञानियों के पास रहती हैं, न नितांत मूखऱ्ों के पास। न तो इन्हें ज्ञानियों से लगाव है न मूखऱ्ों से। जैसे बिगड़ैल गाय को कोई-कोई ही वश में कर पाता है, वैसे ही लक्ष्मी भी कहीं-कहीं ही ठहरती हैं। ܀܀܀
Vidur Neeti (Hindi Edition)
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