आरोषणो यः समलोष्टाश्मकाञ्चनः प्रहीणशोको गतसन्धिविग्रहः। निन्दाप्रशंसोपरतः प्रियाप्रिये त्यजन्नुदासीनवदेष भिक्षुकः।।6।। संन्यासी उसी व्यक्ति को कहा जा सकता है जो क्रोध नहीं करता; सुख-दुख, शोक-हर्ष से परे हो; मिट्टी-पत्थर और सोने को एक समान समझता हो; जो न किसी से प्रेम करता हो न किसी से घृणा और शत्रुता; जो न किसी की बुराई करता हो न प्रशंसा।

