जो अपने स्वभाव के विपरीत कार्य करते हैं वह कभी नहीं शोभा पाते। 2. गृहस्थ होकर अकर्मण्यता और संन्यासी होते हुए विषयासक्ति का प्रदर्शन करना ठीक नहीं है। 3. अल्पमात्र में धन होते हुए भी कीमती वस्तु को पाने की कामना और शक्तिहीन होते हुए भी क्रोध करना मनुष्य की देह के लिये कष्टदायक और काँटों के समान है। 4. किसी भी कार्य को प्रारंभ करने से पहले यह आत्ममंथन करना चाहिए कि हम उसके लिये या वह हमारे लिये उपयुक्त है कि नहीं। अपनी शक्ति से अधिक का कार्य और कोई वस्तु पाने की कामना करना स्वयं के लिये ही कष्टदायी होता है। 5. न केवल अपनी शक्ति का, बल्कि अपने स्वभाव का भी अवलोकन करना चाहिए। अनेक लोग क्रोध करने
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