Praveen Gupta

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यथा मधु समादत्ते रक्षन् पुष्पाणि षट्पदः। तद्वदर्थान्मनुष्येभ्य आदधादविहिंसया।।17।। जिस प्रकार भौंरा फूलों को नुकसान पहुँचाए बिना उनका रस चूसता है, उसी प्रकार राजा को भी प्रजा से कर के रूप में धन इस प्रकार से ग्रहण करना चाहिए कि उसे कष्ट न हो।
Vidur Neeti (Hindi Edition)
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