Praveen Gupta

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द्वाविमौ न विराजेते विपरीतेन कर्मणा। गृहस्थश्च निरारम्भः कार्यवांश्चैव भिक्षुकः।।62।। अपनी मर्यादा के विपरीत कर्म करके ये दो प्रकार के लोग संसार में अपमान के भागी बनते हैं-एक, कर्महीन गृहस्थ और दूसरे सांसारिक मोह-माया में फँसे संन्यासी।
Vidur Neeti (Hindi Edition)
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