तृणोल्कया ज्ञायते जातरूपं वृत्तेन भद्रो व्यवहारेण साधु। शूरो भयेष्वर्थकृच्छ्षु धीरः कृच्छ्षे्वापत्सु सुहृदश्चारयश्च।।50।। आग में तपाकर सोने की, सदाचार से सज्जन की, व्यवहार से संत पुरुष की, संकट काल में योद्धा की, आर्थिक संकट में धीर की तथा घोर संकट काल में मित्र और शत्रु की पहचान होती है।

