Praveen Gupta

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यदतप्तं प्रणमति न तत् सन्तापयन्त्यपि। यश्च स्वयं नतं दारुं न तत् सन्नमयन्त्यपि।।36।। जो धातु बिना गरम किए मुड़ जाती है, उन्हें आग में तपने का कष्ट नहीं उठाना पड़ता। जो लकड़ी पहले से झुकी होती है, उसे कोई नहीं झुकाता।
Vidur Neeti (Hindi Edition)
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