Praveen Gupta

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षडिमान् पुरुषो जह्याद् भिन्नां नावमिवार्णवे। अप्रवत्तक्तारमाचार्यमनधीयानमृत्विजम् ।।84।। अरक्षितारं राजानं भार्यां चाप्रियवादिनीम्। ग्रामकामं च गोपालं वनकामं च नापितम्।।85।। राजन! चुप रहने वाले आचार्य, मंत्र न बोलने वाले पंडित, रक्षा में असमर्थ राजा, कड़वा बोलनेवाली पत्नी, गाँव में रहने के इच्छुक ग्वाले तथा जंगल में रहने के इच्छुक नाई-इन छह लोगों को वैसे ही त्याग देना चाहिए जैसे छेदवाली नाव को त्याग दिया जाता
Vidur Neeti (Hindi Edition)
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