आत्मनाऽऽत्मानमन्विच्छेन्मनोबुद्धीन्द्रियैर्यतै। आत्मा ह्येवात्मनो बन्धुरात्मैव रिपुरात्मनः।।64।। राजन! मन-बुद्धि तथा इंद्रियों को आत्म-नियंत्रित करके स्वयं ही अपने आत्मा को जानने का प्रयत्न करें, क्योंकि आत्मा ही हमारा हितैषी और आत्मा ही हमारा शत्रु है।

