Praveen Gupta

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प्रियो भवति दानेन प्रियवादेन चापरः। मत्रमूलबलेनान्यो यः प्रियः प्रिय एव सः।।3।। कोई पुरुष दान देकर प्रिय होता है, कोई मीठा बोलकर प्रिय होता है, कोई अपनी बुद्धिमानी से प्रिय होता है; लेकिन जो वास्तव में प्रिय होता है, वह बिना प्रयास के प्रिय होता है। ܀܀܀ द्वेष्यो न साधुर्भवति न मेधावी न पण्डितः। प्रिये शुभानि कार्याणि द्वेष्ये पापानि चैव ह।।4।। जो प्रिय लगता है उसके बुरे काम भी अच्छे लगते हैं; लेकिन जो अप्रिय है, वह चाहे बुद्धिमान, सज्जन या विद्वान हो, बुरा ही लगता है।
Vidur Neeti (Hindi Edition)
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