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Kindle Notes & Highlights
वे कहने लगे, “सुना है, आप कॉफी पीते हैं?” मैंने कहा, “हाँ, छह साल कॉफी पी। अब एकदम बन्द कर दी है।” वे बोले, “सिर्फ छह साल? मैं तीस सालों से पी रहा हूँ।” मैंने कहा, “आप मेरे परदादा हुए। प्रणाम करता हूँ। आशीर्वाद दीजिए कि आपके-सरीखा पुण्यवान न बनूँ।”
मुसीबत उस आदमी की है जो विशिष्ट हुए बिना जी नहीं सकता। वह जिस क्षण अपने को विशिष्ट नहीं पाएगा, मृत्यु के निकट पहुँच जाएगा।
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‘जूते खा गए’—अजब मुहावरा है। जूते तो मारे जाते हैं। वे खाए कैसे जाते हैं? मगर भारतवासी इतना भुखमरा है कि जूते भी खा जाता है।
“इतने सालों से लिख रहे हो। क्या मिला? कुछ लोगों की तारीफ! बस! लिखने से ज्यादा शोहरत पिटने से मिली। इसलिए हर लेखक को साल में कम-से-कम एक बार पिटना चाहिए। तुम छह महीने में एक बार पिटो। फिर देखो कि बिना एक शब्द लिखे अन्तर्राष्ट्रीय ख्याति के होते हो कि नहीं।