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Kindle Notes & Highlights
बड़ा साहब ‘स्टीम रोलर’ होता है, जो डिपार्टमेंट के बड़े-छोटे का भेद मिटा देता है। सब समतल हो जाते हैं, क्योंकि सब डरे हुए होते हैं। डर भेद मिटाता है। प्रेम नहीं मिटता। डर खुद प्रेम पैदा करता है। डूबने से बचने के लिए साहब चपरासी के पैर इस तरह पकड़ लेता है, जैसे वे भगवान के चरण हों!
मुर्गा दिन में सबसे पहले क्रान्ति का आह्वान करता है। क्रान्ति की बाँग देता है और फिर घूड़े पर दाने बीनने लगता है। भारतीय बुद्धिजीवी का भी यही हाल है। क्रान्ति की बाँग, दाने पर दाने चुगना और हलाल होने का इन्तजार करना। यों
जिस समाज के लोग शर्म की बात पर हँसें और ताली पीटें, उसमें क्या कभी कोई क्रान्तिकारी हो सकता है? होगा शायद। पर तभी होगा, जब शर्म की बात पर ताली पीटने वाले हाथ कटेंगे और हँसने वाले जबड़े टूटेंगे।
बिगड़ा रईस और बिगड़ा घोड़ा एक तरह के होते हैं—दोनों बौखला जाते हैं। किससे उधार लेकर खा जाएँ, ठिकाना नहीं। उधर बिगड़ा घोड़ा किसे कुचल दे, ठिकाना नहीं।