ऋत्विक

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यह कसक अरे आँसू सह जा। बनकर विनम्र अभिमान मुझे मेरा अस्तित्व बता, रह जा। बन प्रेम छलक कोने-कोने अपनी नीरव गाथा कह जा। करुणा बन दुखिया वसुधा पर शीतलता फैलाता बह जा।
ध्रुवस्वामिनी
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