नौकर की कमीज
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Read between July 19 - November 5, 2022
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घर बाहर जाने के लिए उतना नहीं होता जितना लौटने के लिए होता है।
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सब फालतू है, इसका अहसास चौबीसों घंटे हवा की तरह मेरे पास रहता था, जिसमें साँस लेकर बाकायदा मैं जिंदा था।
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ऐसी अकलमंदी किस काम की कि हर आनेवाला दुःख पहले से बड़ा होता चला जाए और बीते दुःख का संतोष हो कि बड़ा नहीं था।
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मेरा वेतन एक कटघरा था, जिसे तोड़ना मेरे बस में नहीं था। यह कटघरा मुझमें कमीज की तरह फिट था। और मैं अपनी पूरी ताकत से कमजोर होने की हद तक अपना वेतन पा रहा था। इस कटघरे में सुराख कर मैं सिनेमा देखता था, या स्वप्न।
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अगर उसके हाथ में झाडू नहीं होती तो उसे मेहतर कहना मुश्किल था।
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जब शेर निकलता है तब दूसरे जानवरों, चिड़ियों में हलचल मच जाती है।
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मैंने पूछा, “चंद्रमा से खपरे नहीं सूखेंगे?”
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अर्थशास्त्र के शिक्षक ने कुछ दिनों के बाद उनको समझाया होगा, “तुम्हारी पत्नी मर गई। इससे तुम्हें बहुत नुकसान हुआ।
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चन्द्रमा आकाश से कहीं नहीं जा सकता। यदि वह नहीं दिखता तो वह बादलों में छुपा होगा। बाद में दिख जाएगा। चन्द्रमा आकाश से खोकर आकाश में ही रहेगा। यदि वह नहीं दिखता तो उसके खोने की फिक्र मैं नहीं करूँगा। इसी तरह की बहुत-सी झंझटों से मैं मुक्त था।
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उसकी आँखों में आँसू देखकर दुख हुआ पर मैंने ऐसी कोई बात नहीं की थी जिससे उसकी आँखों में आँसू आएँ।
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किसी दुःख के परिणाम से कोई जहर नहीं खा सकता। यह तो षड्यंत्र होता है। आदमी को बुरी तरह हराने के बाद जहर का विकल्प सुझाया जाता है। आदमी को भूखा रखकर जहर खाने के लिए मजबूर नहीं किया जा सकता। भूखा रखना किसी को हराना नहीं था। यदि ऐसा होता तो हराने का काम आसान हो जाता।
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हालत सुधारने के लिए अधिक-से-अधिक मेहनत करने के उपाय पर मुझे विश्वास नहीं था।
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जिस प्रकाश की झलक फटे हुए गोल छेद से, सूर्य और चन्द्रमा जानकर वे देखते हैं, उनसे कहा जाए कि सूर्य और चन्द्रमा की खिड़की से कूदकर चोर की तरह वहाँ जाने की बात सोचने के बदले यदि पूरे आकाश को फाड़ दिया जाए तो पूरे आकाश जितना बड़ा सूर्य होगा और चन्द्रमा होगा यह बात सोची जाए, तब वे कहेंगे—ऐसे ही रहने दो! सूर्य कभी-कभी हमारे लिए रोजी का दिन भी ले आता है। और चन्द्रमा कभी-कभी नींद की रात। कुछ उल्टा-सीधा हो गया तो हम मिलनेवाले काम के दिन और नींद की रात को भी खो बैठेंगे।
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इसका कारण यह होगा कि मुझमें समझदारी थी। इस समझदारी के कारण मैंने सोच लिया था कि मैं बच नहीं सकता।
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“हमारी समझदारी और अदब-कायदे को वे मँहगू की स्वामिभक्ति से मिला कर हमसे एक अच्छे काम की अपेक्षा करते हैं। कमीज
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मँहगू पागल हो गया है।
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बहुत से लोग छाती के बोझ को समेटे हुए सोचते होंगे कि इससे सुरक्षा है। कम-से-कम जान बची है। मरे नहीं।
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दोपहर का एक बजा होगा। भूख लग रही थी। भूख से ज्यादा प्यास लग रही थी। प्यास से ज्यादा चाय पीने की इच्छा हो रही थी।
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घर बदलने और नौकरी बदलने के बदले खुद को बदलना चाहिए।
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“काम को तुम मजबूरी कहते हो, उसे तुम अपना कर्तव्य समझ लो।”
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मैं खुर्राट पुराना नौकर होने के पहले रेडियो मिस्त्री बनना चाहता हूँ। बिगड़ा हुआ रेडियो सुधार दूँ और उससे गाने आने लगें, खबरें आने लगें तो मुझे लगेगा मैंने कुछ किया है।
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तीन दिन के भूखे आदमी को यदि समझदारी से गुदगुदाया जाए तो उसे भी हँसी आ जाएगी, इस समझदारी के शिकार करोड़ों आदमी थे।
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याद कर रहे हैं, या कल्पना कर रहे हैं, इसमें अंतर कर पाना मुश्किल काम था।
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“डर किसी का नहीं है। किसी-न-किसी का बंधन हो जाता है। शहर से बाहर निकलो तो लौटने में बहुत समय लगता है। छुट्टी होती नहीं।”