फ़ौजी कहता था : ‘‘खाते वो भी हैं लेकिन बराहेरास्त हाथ में कुछ नहीं लेते। वो तो रोटी का निवाला भी हाथ से मुँह में नहीं डालते। छुरी से काटते हैं और काँटे से उठा के मुँह में डालते हैं ! और दोनों कामों के लिए हिन्दुस्तानियों का इस्तमाल करते हैं। छुरी भी ! काँटा भी !’’

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