गाँधीजी के साथ यह अजीब विडंबना आज तक रही थी कि जिस देश ने इन्हें बापू कहा, उसी अपने देश ने इन्हें सबसे कम पढ़ा था। इनके बारे में सबसे कम जानना चाहा था। हैरी पॉटर और चेतन भगत को दिन-रात एक करके पढ़ने वाली पीढ़ी ने कभी गाँधीजी के लिए समय नहीं निकाला और गाँधीजी जैसे और भी कई व्यक्तित्वों के बारे में उनकी जानकारी केवल पीढ़ी-दर-पीढ़ी एक-दूसरे से सुने किस्से-कहानियों के सहारे ही थी और उनकी सारी धारणाएँ भी इसी पर आधारित होती थीं।