जदपि कबित रस एकउ नाहीं । राम प्रताप प्रगट एहि माहीं ।। सोइ भरोस मोरें मन आवा । केहिं न सुसंग बड़प्पनु पावा ।। यद्यपि मेरी इस रचनामें कविताका एक भी रस नहीं है, तथापि इसमें श्रीरामजीका प्रताप प्रकट है। मेरे मनमें यही एक भरोसा है। भले संगसे भला, किसने बड़प्पन नहीं पाया? ।।

