पर अकाजु लगि तनु परिहरहीं । जिमि हिम उपल कृषी दलि गरहीं ।। बंदउँ खल जस सेष सरोषा । सहस बदन बरनइ पर दोषा ।। जैसे ओले खेतीका नाश करके आप भी गल जाते हैं, वैसे ही वे दूसरोंका काम बिगाड़नेके लिये अपना शरीरतक छोड़ देते हैं। मैं दुष्टोंको [हजार मुखवाले] शेषजीके समान समझकर प्रणाम करता हूँ, जो पराये दोषोंका हजार मुखोंसे बड़े रोषके साथ वर्णन करते हैं

