निज कबित्त केहि लाग न नीका । सरस होउ अथवा अति फीका ।। जे पर भनिति सुनत हरषाहीं । ते बर पुरुष बहुत जग नाहीं ।। रसीली हो या अत्यन्त फीकी, अपनी कविता किसे अच्छी नहीं लगती? किन्तु जो दूसरेकी रचनाको सुनकर हर्षित होते हैं, ऐसे उत्तम पुरुष जगत्में बहुत नहीं हैं, ।।

