Pulakesh

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निज कबित्त केहि लाग न नीका । सरस होउ अथवा अति फीका ⁠।⁠। जे पर भनिति सुनत हरषाहीं । ते बर पुरुष बहुत जग नाहीं ⁠।⁠। रसीली हो या अत्यन्त फीकी, अपनी कविता किसे अच्छी नहीं लगती? किन्तु जो दूसरेकी रचनाको सुनकर हर्षित होते हैं, ऐसे उत्तम पुरुष जगत्‌में बहुत नहीं हैं, ⁠।⁠।⁠
Ramcharitmanas Vyakhya Sahit Tika, Code 0081, Devnagri Hindi, Gita Press Gorakhpur (Official) (Hindi Edition)
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