Pulakesh

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मुद मंगलमय संत समाजू । जो जग जंगम तीरथराजू ⁠।⁠। राम भक्ति जहँ सुरसरि धारा । सरसइ ब्रह्म बिचार प्रचारा ⁠।⁠। संतोंका समाज आनन्द और कल्याणमय है, जो जगत्‌में चलता-फिरता तीर्थराज (प्रयाग) है। जहाँ (उस संतसमाजरूपी प्रयागराजमें) रामभक्तिरूपी गङ्गाजीकी धारा है और ब्रह्मविचारका प्रचार सरस्वतीजी हैं ⁠।⁠।⁠
Ramcharitmanas Vyakhya Sahit Tika, Code 0081, Devnagri Hindi, Gita Press Gorakhpur (Official) (Hindi Edition)
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