Kindle Notes & Highlights
किसी राजा का महल इतनी ऊँचाई पर नहीं होना चाहिए कि वह लोगों का रोना-गाना न सुन सके।’
ऐश्वर्य की भी एक मियाद होती है और वह पूरी हो गई। और वह कब पूरी हुई मुझे पता ही नहीं चला।’
प्रत्येक मनुष्य कभी न कभी कुछ ही पलों या क्षणों के लिए ही सही, किसी न किसी का ईश्वर हुआ करता है। ऐसा एक नहीं, कई बार हो सकता है। आख़िर ईश्वर है क्या? मनुष्य के श्रेष्ठतम का प्रकाश ही तो? और यह प्रकाश प्रत्येक मनुष्य के भीतर होता है। लेकिन फूटता तभी है जब किसी को कातर, बेबस, निरुपाय और प्रताड़ित देखता है। मैं भी था ईश्वर। हाँ, मेरी अवधि किन्हीं कारणों से थोड़ी लम्बी खिंच गई रही होगी।... चलो अब।’
मरता वही है, जो पैदा होता है। जो पैदा नहीं होता, वह मरेगा कैसे? जैसे, स्वर्ग! न वहाँ कोई पैदा होता है, न मरता है। पता नहीं, कोई जीता भी है या नहीं। वह बंजर प्रदेश है। यह मर्त्यलोक है। इसी को सृष्टि कहते हैं। जीवन यहीं है और जीवन जीने के लिए होता है। इसलिए होता है कि जिया जाए- रस लेकर, मजे लेकर। इसलिए नहीं कि मरते दम तक रोते रहें, कराहते रहें, तड़पते रहें, आहकह करते रहें। मुझे खुशी है कि मेरे बेटों में तुम ही हो, जिसमें मेरा अंश सबसे अधिक है। तुम्हें देखता हूँ तो मुझे अपना बचपन याद आता है...। तो मरने की चिन्ता से जीना स्थगित मत करो। मरना जब होगा, तब होगा। इसके पहले जितना और जैसे जी सको,
  
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मैंने कहा था कि तुम्हारा अधिकार सिर्फ कर्म करने में है, फल में नहीं। वह आधी बात थी, पूरी बात नहीं। पूरी बात यह है कि फल कर्म में ही निहित रहता है, भले दिखाई न दे।
‘एक समय ऐसा आता है, जब जीने की इच्छा खत्म हो जाती है।’




