Utkarsh Garg

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परन्तु जब वह क्लास गया तो उसने देखा कि बुझी हुई आँखों वाले लड़के लाशों की तरह बैठे हुए हैं । किसी आँख की खिड़की से कोई आत्मा नहीं झाँक रही थी । आँखें झपक रही थीं । मालिक-मकान जैसे घबराहट में भागते समय खिड़कियाँ बन्द करना भूल गया था । और खिड़कियाँ हवा से खुल रही थीं और बन्द हो रही थीं । बन्द हो रही थीं और खुल रही थीं । शीशे टूट रहे थे । किवाड़ बरसात झेलते-झेलते अधमुए हो गए थे
टोपी शुक्ला
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