"तुम मुसलमानों से नफ़रत करते हो । सकीना हिन्दुओं से घिन खाती है । मैं...मैं डरता हूँ शायद । हमारा अंजाम क्या होगा बलभद्र ? मेरे दिल का डर, तुम्हारे और सकीना के दिल की नफ़रत–ये क्या इतनी अटल सच्चाइयाँ हैं कि बदल ही नहीं सकतीं ? हिस्ट्री का टीचर कल क्या पढ़ाएगा ? वह इस सूरते-हाल को कैसे एक्सप्लेन करेगा कि मैं तुमसे डरता था और तुम मुझसे नफ़रत करते थे । फिर भी हम दोस्त थे । मैं तुम्हें मार क्यों नहीं डालता ? तुम मुझे क़त्ल क्यों नहीं कर देते ? कौन हमारे हाथ थाम रहा है ? मैं हिस्ट्री नहीं पढ़ा सकता । मैं रिज़ाइन कर दूँगा ।" "यह कोई बहुत अकलमन्दी की बात नहीं करोगे ।" "मगर..." "भाई !" टोपी ने उसे टोक
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