वह डॉक्टर भृगु नारायण शुक्ला नीले तेल वाले और रामदुलारी की क्रिएशन था । और चूँकि वह 'फिर' को 'फ़िर' और 'फ़ौरन' को 'फौरन' कहा करता था, इसलिए यदि मैं उसकी बोलचाल को सुधार देता तो यह जीवनी के साथ बेईमानी होती । इसीलिए जीवनी लिखना उपन्यास लिखने से ज़्यादा टेढ़ा काम है ।