यह तनातनी इतनी बढ़ी कि स्कूल के सालाना मुशायरे की कमेटी में मौलवी साहब ने पण्डितजी का नाम नहीं रखा । मुशायरा हुआ । परन्तु लड़कों ने बहुत शोर किया । फिर पण्डितजी ने मुशायरे की चोट पर कवि-सम्मेलन किया । शहर का पहला कवि-सम्मेलन हुआ । परन्तु बाद में पण्डितजी ने अपने एक दोस्त मौलवी अहमदुल्ला एडवोकेट से कहा : "मुशायरे वाली बात पैदा न हुई ।"