नफ़रत ! यह शब्द कैसा अजीब है ! नफ़रत ! यह एक अकेला शब्द राष्ट्रीय आन्दोलन का फल है । बंगाल, पंजाब और उत्तर प्रदेश के इन्कलाबियों की लाशों की क़ीमत केवल एक शब्द है–नफ़रत ! नफ़रत ! शक ! डर ! इन्हीं तीन डोंगियों पर हम नदी पार कर रहे हैं । यही तीन शब्द बोए और काटे जा रहे हैं । यही शब्द धूल बनकर माँओं की छातियों से बच्चों के हलक़ में उतर रहे हैं । दिलों के बन्द किवाड़ों की दराज़ों में यही तीन शब्द झाँक रहे हैं । आवारा रूहों की तरह ये तीन शब्द आँगनों पर मँडरा रहे हैं । चमगादड़ों की तरह पर फड़फड़ा रहे हैं और रात के सन्नाटे में उल्लुओं की तरह बोल रहे हैं । काली बिल्ली की तरह रास्ता काट रहे हैं ।
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