Utkarsh Garg

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जब पण्डितजी तक ये बातें पहुँचीं तो उन्हें बहुत बुरा लगा । वह अच्छी उर्दू, फ़ारसी जानते थे । मगर मौलवी साहब की ज़िद में उन्होंने उर्दू बोलना छोड़ दिया । हिन्दी बोलने में उन्हें कठिनाई होती । परन्तु वह हिन्दी ही बोलने लगे । उर्दू-फ़ारसी के जो शब्द उनकी ज़बान पर चढ़े हुए थे उन्हें कोशिश करके उन्होंने भुला दिया ।
टोपी शुक्ला
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