यह है वह बलभद्र नारायण शुक्ला जो इस कहानी का हीरो है । जीवनी या कहानी सुनाने का एक तरीक़ा यह भी है कि कथाकार या जीवनीकार कहानी या जीवन को कहीं से शुरू कर दे । जीवन ही की तरह कहानी के आरम्भ का भी कोई महत्त्व नहीं होता । महत्त्व केवल अन्त का होता है । जीवन के अन्त का भी और कहानी के अन्त का भी । मैं यदि आपको यह दिखलाता कि बलभद्र नारायण शुक्ला एक पालने में स्याह गोश्त के एक लोथड़े की तरह पड़ा ट्याँव-ट्रयाँव कर रहा है और उसकी कमर में काले नाड़े की करधनी है और उसके काले माथे पर काजल का एक काला टीका है, तो सम्भव है कि आप मुँह फेर लेते कि इस बच्चे में क्या ख़ास बात है !–जबकि सच पूछिए तो हर कहानी और हर
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