Utkarsh Garg

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इसलिए वह हिन्दी की बुराई करने लगे : "लाहौलविला क़ुव्वत । क्या लग्व ज़बान है । दो लफ़्ज बोलो तो ज़बान बेचारी हाँफने लगती है
टोपी शुक्ला
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