Utkarsh Garg

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हर कन्धे और पीठ पर आँखें उग आई थीं । परछाइयाँ हिन्दू-मुसलमान बन गई थीं और आदमी अपनी ही परछाइयों से डरकर भाग रहा था । टूटे हुए ख़्वाबों के रेज़े शीशे की किर्चिंयों की तरह तलवों में चुभ रहे थे । परन्तु वह दर्द से चीख़ नहीं सकता था ।
टोपी शुक्ला
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