"मुसलमानों की वफ़ादारी देखने के लिए हम अपना गोल्ड मेडिल तो नहीं खो सकते ना ?" "मगर फिर दूसरी शक्ल क्या है ?" "फ़रज़ करो कि हॉकी नहीं युद्ध हो रहा है । यदि हम मुसलमानों की वफ़ादारी देखने के लिए उन्हें फौज़ में लें और वे पाकिस्तान से मिल जाएँ तो यह इम्तहान किसे महँगा पड़ेगा ?" इस लॉजिक ने टोपी का जी खुश कर दिया । यह शक ही ठीक है । यह नफ़रत ही ठीक है । अधिक-से-अधिक यही होता है न कि बलवे होते रहते हैं । सौ-दो सौ आदमी मारे जाते हैं ।... "सौ-दो सौ आदमियों की जान बचाने के लिए हम अपनी इंडिपेंडेंस को ख़तरे में नहीं डाल सकते ।"