लाश ! यह शब्द कितना घिनौना है ! आदमी अपनी मौत से, अपने घर में, अपने बाल-बच्चों के सामने मरता है तब भी बिना आत्मा के उस बदन को लाश ही कहते हैं और आदमी सड़क पर किसी बलवाई के हाथों मारा जाता है, तब भी बिना आत्मा के उस बदन को लाश ही कहते हैं । भाषा कितनी ग़रीब होती है ! शब्दों का कैसा ज़बरदस्त काल है !