देखिए बात यह है कि पहले ख़्वाब केवल तीन तरह के होते थे–बच्चों का ख़्वाब, जवानों का ख़्वाब और बूढ़ों का ख़्वाब । फिर ख़्वाबों की इस फ़ेहरिस्त में आज़ादी के ख़्वाब भी शामिल हो गए । और फिर ख़्वाबों की दुनिया में बड़ा घपला हुआ । माता-पिता के ख़्वाब बेटे-बेटियों के ख़्वाबों से टकराने लगे । पिताजी बेटे को डॉक्टर बनाना चाहते हैं, और बेटा कम्युनिस्ट पार्टी का होल टाइमर बनकर बैठ जाता है । केवल यही घपला नहीं हुआ । बरसाती कीड़ों की तरह भाँति-भाँति के ख़्वाब निकल आए । क्लर्कों के ख़्वाब । मज़दूरों के ख़्वाब । मिल-मालिकों के ख़्वाब । फ़िल्म स्टार बनने के ख़्वाब । हिन्दी ख़्वाब । उर्दू ख़्वाब । हिन्दुस्तानी
...more