सबको खुश करने के चक्कर में अपनी प्राथमिकताओं को नजरअंदाज कर बैठते हैं। मैं यह नहीं कहता कि आप रिश्ते या दोस्ती न निभाएँ, पर इसका अर्थ यह तो नहीं कि आप सबको खुश करने के चक्कर में अपना ही नुकसान कर लें। गैर-महत्त्वपूर्ण बातों और कामों के लिए ‘न’ कहना सीखें। अपनी प्राथमिकताएँ तय कर लें और उन्हें अनदेखा न करें। हिंदी के सुप्रसिद्ध साहित्यकार जयशंकर प्रसाद ने अपने एक नाटक में लिखा था—‘महत्त्वाकांक्षा का मोती निष्ठुरता की सीप में पलता है।’