Kindle Notes & Highlights
अनेकांतवाद सिखाता है कि सिर्फ अपने ही विचार को सही मानना और दूसरों के विचारों को सिरे से नकारने का आग्रह स्वयं में गलत है।
Excess of everything is bad!’
हम ऐसे लोगों का साथ ज्यादा पसंद करते हैं, जो हमें एप्रिशिएट करता रहे या हमारी कमियों को नजरअंदाज करे।
सिविल सेवा परीक्षा की प्रकृति ही कुछ ऐसी है कि इसके लिए परिपक्वता (maturity) का एक स्तर आवश्यक है, जिसका हमारी शारीरिक उम्र से कोई खास लेना-देना नहीं होता।
"Jack of all trades, master of one." उस "Master of One"
आप में कड़ी मेहनत करने की प्रवृत्ति होना इसलिए भी जरूरी है, क्योंकि परीक्षा में सफलता के बाद सेवाकाल में भी हर मोड़ पर कठिन परिश्रम व चुनौतियों का सामना करना ही होता है। कहा भी गया है—‘कठिन परिश्रम का पुरस्कार है और अधिक परिश्रम।’
हमें गुरूर हो भी तो भला किस बात का! हम जितना पढ़ते जाते हैं, पाते हैं कि उससे कहीं ज्यादा हमने पढ़ा ही नहीं है।
टॉपर कुछ अलग तैयारी नहीं करते, वे भी वही पुस्तकें और अध्ययन सामग्री पढ़ते हैं और उनकी तैयारी भी मोटे तौर पर बाकी अभ्यर्थियों जैसी ही होती
प्लानिंग की प्रक्रिया में एक बड़ा डर यह है कि कुछ साथी योजना बनाने में प्रवीण होते हैं और कार्यान्वयन में कमजोर।
कमजोरियाँ होना बुरी बात नहीं है, पर उन्हें न पहचानना बुरी बात है।’’
जब तैयारी करें तो यह भी ध्यान में रखें और तैयारी के प्रति अपने कमिटमेंट में कमी कतई न आने दें।
‘सारे अंडे एक ही टोकरी में नहीं रखने चाहिए।’ यानी कोई कैरियर विकल्प सोचकर या एंपलॉयबिलिटी प्राप्त कर रिस्क फैक्टर को कुछ कम जरूर किया जा सकता है।
जी.एस. में पिछले पाँच वर्षों के पेपर अच्छी समझ विकसित कर देते हैं।
‘आज इतने घंटे पढ़ना है’ यह लक्ष्य बनाने से अच्छा है कि ‘आज इतना पढ़ना है’ का लक्ष्य तय करें।
जब आप स्टडी मैटीरियल को पढ़कर संक्षेप में अपनी भाषा में लिखते हैं तो न केवल आपको वह स्वतः याद हो जाता है, बल्कि जाने-अनजाने राइटिंग स्किल भी डेवलप होता है।
काफी संक्षिप्त नोट्स बनाएँ। ध्यान रहे, आपको कोई नई पुस्तक नहीं लिखनी है, बल्कि आप अपनी तैयारी और रिवीजन को सुविधाजनक बनाने के लिए नोट्स बना रहे हैं।
जो पढ़ें, उसे समझे बगैर आगे न बढ़ें।
आपकी सफलता खुद शोर मचाएगी।
पाठ्यक्रम को अधिकाधिक कवर करें। चयनात्मक अध्ययन से अब काम नहीं चलता। पाठ्यक्रम को इस तरह कवर करें कि अगर आपको हर टॉपिक के बारे में बहुत ज्यादा न भी पता हो, पर पाँच-सात बिंदु पता हों। आजकल परीक्षा में बहुत बड़े उत्तर नहीं लिखने होते।
रोजगार (employment) होना या रोजगार पाने की योग्यता (employability) होना तनाव को घटाने में काफी मदद करते हैं।
सितारों के आगे जहां और भी है।
“There is no perfect way, There are many good ways.”
टॉपरों और अभ्यर्थियों में कोई बहुत ज्यादा फर्क नहीं होता।
‘कर्म करनेवाले लोगों में शामिल हों, क्योंकि उनकी संख्या कम होने के कारण प्रतियोगिता बहुत कम है और आपकी सफलता के अवसर ज्यादा।’
उत्तर लेखन के लिए सबसे ज्यादा आवश्यक चीज आत्मविश्वास है, जो लिखने से ही आता है।
हर हफ्ते एक निबंध और दो केस स्टडी लिखने की प्रैक्टिस जरूर करें।
सबको खुश करने के चक्कर में अपनी प्राथमिकताओं को नजरअंदाज कर बैठते हैं। मैं यह नहीं कहता कि आप रिश्ते या दोस्ती न निभाएँ, पर इसका अर्थ यह तो नहीं कि आप सबको खुश करने के चक्कर में अपना ही नुकसान कर लें। गैर-महत्त्वपूर्ण बातों और कामों के लिए ‘न’ कहना सीखें। अपनी प्राथमिकताएँ तय कर लें और उन्हें अनदेखा न करें। हिंदी के सुप्रसिद्ध साहित्यकार जयशंकर प्रसाद ने अपने एक नाटक में लिखा था—‘महत्त्वाकांक्षा का मोती निष्ठुरता की सीप में पलता है।’
‘जनरल रीडिंग हैबिट’ आपकी सोच की गहराई और दायरा बढ़ाती है।
अगर सोशल मीडिया का इस्तेमाल सँभलकर और संतुलित ढंग से किया जाए तो यह बाधक नहीं, सहायक भी हो सकता है।
हर सफल व्यक्ति की सफलता के पीछे एक अंतहीन संघर्ष छिपा होता है, जो उसे दिन-प्रतिदिन और परिपक्व बनाता है।
पढ़ने के साथ-साथ लिखने की आदत डालना तथा अतिवाद से बचने की आदत आपको परिपक्वता की ओर ले जाती है।
यदि हमने कोई गलती या त्रुटि की है तो हमारा साथी भी वही गलती करे, इसमें कौन सी समझदारी है? मत भूलें कि ज्ञान बाँटने से बढ़ता है।
अच्छा गाइड, अच्छा टीचर, अच्छा दोस्त हो तो तैयारी आसान हो जाती है।
अगर हमारा दोस्त या परिचित सफल हो तो निस्संदेह हमें खुशी होनी चाहिए। हमारी सफलता कभी भी अकेले खुद की नहीं होती, उसमें सभी का सहयोग और योगदान होता है।
शब्द सीमा में थोड़े-बहुत अंतर से न घबराएँ।
प्रीलिम्स उत्तीर्ण करने का कोई विकल्प नहीं है और इस चरण को अनदेखा करने या हल्के में लेना भारी पड़ सकता है।
करेंट अफेयर्स में जो कुछ भी पढ़ें, उसका बेसिक ज्ञान प्राप्त कर लें। क्योंकि अकसर प्रीलिम्स में करेंट अफेयर्स के सवाल सीधे न पूछकर सामान्य अध्ययन की ट्रेडिशनल जानकारी से जोड़कर पूछे जाते हैं।
परीक्षा को तनाव-मुक्त होकर देना हमारा काम है। उसके परिणाम की उधेड़बुन में लगे रहने का कोई औचित्य नहीं है।
प्रीलिम्स में होनेवाली एक आम गलती यह है कि हम सवाल को ध्यान से या सावधानी से नहीं पढ़ते।
पेपर आसान हो या कठिन, सभी अभ्यर्थियों के लिए एक जैसा ही है।
तीनों वर्षों में निबंध, एथिक्स (जी.एस. पेपर-4) और वैकल्पिक विषय सफलता के महत्त्वपूर्ण सोपान बनकर उभरे हैं।
लेखन कौशल को सुधारे बगैर मुख्य परीक्षा में बेहतरीन अंक लाना संभव नहीं है।
मैंने यह महसूस किया है कि जो चीजें किसी टॉपर को बाकी अभ्यर्थियों से खास बनाती हैं, उनमें बेहद अहम है उसका उसके माध्यम की भाषा पर अधिकार।
अतः अपनी बात को संक्षेप में लिखने की कला सीखें।
इधर-उधर की बातों को लिखने से बचें।
विशेष रूप से आप वेदांत, जैन, बौद्ध और गांधी दर्शन की व्यावहारिक बातें बखूबी तैयार कर लें। यद्यपि अन्य महापुरुषों के विचार भी पढ़ें, पर मेरी राय में भारतीय नेताओं/ सुधारकों में गांधीजी के साथ-साथ नेहरू, टैगोर, डॉ. अंबेडकर और स्वामी विवेकानंद के विचारों को अच्छे से तैयार कर लेना बेहतर रहेगा।
कभी-कभी कुछ ऐसे मामले होते हैं, जिनमें कानून और नैतिकता में अंतर्विरोध होता है। मेरी राय है कि पहले विधिक पक्ष को प्राथमिकता दें और फिर नैतिक पक्ष को।