Vijay Anand Tripathi

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सच्चाई वाली दुनिया इतनी बोरिंग जगह है कि हम तो हर वो बात सही मान लेते हैं जिसको मानने में हमको मजा आए। हिंदी अखबार में संडे का रंगायन-रूपायन नहीं पढ़ते हो? संडे का अखबार बाकी हफ्ते के अखबार से दो रुपये अधिक कीमत का क्यों आता है? क्योंकि उसको पढ़ने में मजा आता है। अटल बिहारी बाजपेई के बूढ़े घुटने या नरसिम्हा राव के मुँह में क्या रखा है! लेकिन रणबीर और दीपिका का क्या चल रहा है, उसमें मौज है, तो है। अमिताभ का रेखा से चक्कर हो या न हो, हम तो उसे सच मान के चलते हैं।”